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Ramayana: The Legends of Prince Rama

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  “ आदि पुरुष ”     का ट्रेलर   देख कर एक पुरानी बात याद आ गयी! उन दिनों ऑनलाइन शौपिंग इतनी आम नहीं होती थी, एक दो साइट्स थीं, जिनसे शौपिंग जरूरत के चलते नहीं, बल्कि शौक के चलते हम लोग शौपिंग कर लिया करते थे.   ऐसी ही एक साईट से एक बार   बच्चों के लिए एनीमेशन मूवीज़ सर्च करते   हुए एक एनीमेशन मूवी की   CD पर नज़र पड़ी, जिसमें रामायण की कथा थी. हमें लगा, मिक्की माउस, डोनाल्ड डक, लूनी टून्स वगैरह तो टीवी पर आते ही रहते हैं, बच्चों के लिए   ये एक अच्छा चेंज रहेगा. वैसे ये भी   लगा था, पता नहीं बच्चों को mytoholigical मूवी उतनी पसंद आएगी या नहीं, पर   जब प्ले किया तो सिर्फ बच्चे नहीं, हम बड़े भी उस एनीमेशन फिल्म में रम गए. आज तो लगभग हर कोई   उस फिल्म को जानता है, पर आर्डर करते वक़्त हमें नहीं पता था, कि ये लीजेंडरी एनीमेशन फिल्म है: Ramayana: The legends of Ram ! इंडिया और जापान के सहयोग से बनी यह फिल्म सच में अद्भुत थी! एनीमेशन भी उस जमाने के हिसाब से बहुत अच्छा था, और साथ ही छोटी-से छोटी डिटेलिंग का भी ख्याल रखा गया था. राम चन्द्...

रेलगाड़ी ...रेलगाड़ी पार्ट-1

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   क्लास ग्रुप में एक  मित्र के मेसेज से पता चला कि आज भारतीय रेल का हैप्पी बर्थडे है. याद करने बैठी तो हैरानी हुई कि ऐसा भी समय था, जब इंडिया में ट्रेन नहीं थीं.  ट्रेन  से जुडी अपनी यादों को समेटने बैठी तो लगा इतनी यादें एक ही पोस्ट में समेटना मुश्किल है. इसलिए आज इस पोस्ट के पहले भाग में मैंने कोशिश की है ट्रेन  से जुड़ी बचपन की यादों  को समेटने की अपनी पहली ट्रेन यात्रा याद करने की कोशिश करूं तो कुछ याद नहीं आता. हमारे लिए रेल परिवार की तरह है, जिन्हें होश संभालते ही देखा, जैसे   मम्मी पापा, बब्बा दादी, दीदी भैया!   सफर कि तो बात ही क्या है, हम तो ट्रेन देख कर भी एक्साइट हो जाते थे. मुझे याद है, KG में हमें एक पार्क में पिकनिक में ले गए थे. ( उस जमाने में भी बच्चों को पिकनिक के नाम पर किसी पार्क में लेजाकर बेवकूफ बना देने का रिवाज़ था ) तभी पार्क के पीछे से ट्रेन   निकली तो हम सब बच्चे खेल रोक कर जोर जोर से चिल्ला कर और हाथ हिला कर टाटा करने लगे. यूँ ट्रेन के डब्बों को टाटा करना कोई नयी बात नहीं थी, हम तो मालगाड़ी तक को टाटा किया करत...

नया साल और बधाई के खत

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   फिर से नया साल आ गया. वैसे बचपन से देख रहे हैं, हर साल नया साल आ ही जाता है, वो भी   सेम तारिख को यानी एक जनवरी को. अब ये अलग बात है कि नए साल कि बधाई देने के तरीकों में जमाने के साथ साथ बहुत बदलाव हुए हैं.   आज के व्हाट्स एप फॉरवर्ड के जमाने में कुछ   लोग ग्रीटिंग कार्ड को याद करके भावुक होते है, पर हमारे बचपन में ग्रीटिंग कार्ड भी नहीं भेजे जाते थे. हमारे लिए नए साल का मतलब होता था, सब को चिट्ठियाँ लिखना ! कम से कम   पंद्रह बीस दिन का प्रोजेक्ट होता था भई, दादाजी, दादीजी, चाचाजी, चाचीजी, मामाजी, मौसी जी, और बड़े भैया और दीदियों को पत्र लिखने का ! और तो और पुराने स्कूल कि सहेलियों को भी चिट्ठियाँ लिखी जातीं. अब पोस्टकार्ड में पत्र लिखना तो हम अपनी प्राइवेसी का घोर उल्लंघन समझते थे, और लिफ़ाफ़े मम्मी को फिजूलखर्ची का प्रतीक लगते थे. (लिफ़ाफ़े हमारे घर में सिर्फ राखी पर आते थे, क्योंकि राखी तो पोस्टकार्ड या अंतर्देशीय में नही भेजी जा सकती थीं.) तो ले-दे कर सिर्फ अंतर्देशीय पत्र बचते थे. दिसम्बर के शुरू में ही मम्मी ढेर सारे इनलैंड लैटर मंगवा देतीं और स्कूल से ...

उपवास

  तो आखिर वो बुधवार आ ही गया, जिसका हमें इंतजार था! वैसे तो हमारे जैसी पांचवी क्लास में पढने वाली बच्ची के लिए क्या सोमवार, क्या बुधवार, सब एक थे, सिवा इतवार के, पर ये बुधवार ख़ास था, क्योंकि इस दिन हम उपवास रखने वाले थे. अब सुनने में एक नौ-दस साल की बच्ची का   उपवास रखने की बात   शायद थोड़ी अजीब लगे, पर ये हंसी मजाक की बात नहीं थी, बल्कि बड़े सोच विचार के बाद लिया गया फैसला था. इस मसले की शुरुआत उस दिन हुई थी,जब हमारी सहेली शशि अपनी मम्मी और दीदी के साथ हमारे घर आई. जब चाय के पोहे की प्लेटें आयीं, तो शशि ने प्लेट लेने से    इनकार कर दिया, ये कह कर,” auntie, आज मेरा उपवास है.”   उसके इस   गर्व   भरे ऐलान से हम तो हैरान रह गए, बल्कि कहना चाहिए, मन ही मन जल-भुन गए! वैसे तो आंटियों या दीदियों का उपवास का ऐलान कोई नई बात नहीं थी, पर शशि के इस ऐलान में वैसी ही गरिमा थी, जैसी किसी नेता के राजनीति से या क्रिकेटर के क्रिकेट से सन्यास लेने के   ऐलान में होती है, लिहाज़ा कुछ ही मिनटों में वो जैसे कोई स्टार बन गयी. उसके लिए बाकायदा तली हुई मूंगफली और आलू ...

मीठी यादें

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  बचपन में हमारी दीवाली और गर्मियों की छुट्टियाँ जबलपुर में बब्बा के घर पर गुजरती थीं. वहां चाचाजी और बुआजी के बच्चों के साथ मौज मस्ती में कैसे टाइम बीतता था, पता ही नहीं चलता था. छुट्टियों का हम बेसब्री से इंतजार करते थे, पर   गर्मियों की छुट्टी का एक बहुत बड़ा आकर्षण होता था, आइस   क्रीम! उस जमाने में हम कुल्फी, ऑरेंज बार, अलाना-फलाना बार के बारे में नहीं जानते थे, हम तो बस लकड़ी की डंडी में लिपटी हुई अद्भुत स्वाद वाली रंग बिरंगी बर्फ   दीवाने थे, जिसे आइस   क्रीम कहा जाता था.    आइस क्रीम वाले की घंटी की आवाज़ सुनते ही हम सब बच्चे गिरते पड़ते चप्पल पहन कर बाहर भागते. घर से थोड़ी दूर अगले चौराहे पर   आइस क्रीम वाले को पकड़ना जो होता था.     अगले चौराहे पर इसलिए, क्योंकि हमारे बब्बाजी (यानि दादाजी)   को आइस क्रीम से सख्त नफरत थी.     अगर वे कभी किसी बच्चे को आइस क्रीम   खाते देख लेते तो उसी समय फिंकवा देते: फेंको इसे, नाले के पानी से बनती है ये! आइस क्रीम फेंके जाने के गम में कभी बब्बा से ये पूछने का ख़याल भी नहीं आया कि...

HAPPY TEACHERS' DAY

 कुछ साल पहले की बात है. हम चंडीगढ़ सब्ज़ी मंडी में सब्ज़ी ख़रीद रहे थे.  गोभी ख़रीदते हुए एक सरदार जी सब्ज़ी वाले से पूछ बैठे, कहाँ के हो. उसने गाँव का नाम बताया तो सरदार जी ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी पत्नी की तरफ़ इशारा किया: अरे, ये वहीं तो पढ़ाती हैं, —— school में! सब्ज़ी वाला भी खुश हो गया. पता लगा, वो भी उसी स्कूल मे पढ़ा है, कुछ साल पहले. सब्ज़ियाँ तौलते हुए वो उनके साथ पुराने teachers और school की बातें करने लगा. उनकी आत्मीय बातें सुनते हुए हमने गोभी ख़रीदी और पैसे देकर चल दिए. जाते हुए मैंने देखा, जब सरदार जी पैसे निकाल कर देने लगे तो सब्ज़ी वाले ने कहा: “ तुसी रैण दो  ( आप रहने दो) . मैडम जी हैं हमारे !” सरदार जी पैसे देने की ज़िद कर रहे थे, और मैं मुस्कुरा रही थी, एक ex-student का अपने school के लिए इतना प्यारा gesture देख कर ! HAPPY TEACHERS' DAY TO ALL

Disciplinary action on a son

To, MR. A        It is regretted to point out that you have failed to comply the instructions issued by the competent authority which required you to have breakfast on time and play piano for one hour, despite repeated verbal reminders.        This act of non-compliance amounting to unbecoming of a good child has been viewed seriously and calls for strict disciplinary action as per family conduct rules, 1997 and 2005 including debarring you from playing   video games or eating pizza for one week.   Due care should be taken not to repeat such acts in future.                                                           ...