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उपवास

  तो आखिर वो बुधवार आ ही गया, जिसका हमें इंतजार था! वैसे तो हमारे जैसी पांचवी क्लास में पढने वाली बच्ची के लिए क्या सोमवार, क्या बुधवार, सब एक थे, सिवा इतवार के, पर ये बुधवार ख़ास था, क्योंकि इस दिन हम उपवास रखने वाले थे. अब सुनने में एक नौ-दस साल की बच्ची का   उपवास रखने की बात   शायद थोड़ी अजीब लगे, पर ये हंसी मजाक की बात नहीं थी, बल्कि बड़े सोच विचार के बाद लिया गया फैसला था. इस मसले की शुरुआत उस दिन हुई थी,जब हमारी सहेली शशि अपनी मम्मी और दीदी के साथ हमारे घर आई. जब चाय के पोहे की प्लेटें आयीं, तो शशि ने प्लेट लेने से    इनकार कर दिया, ये कह कर,” auntie, आज मेरा उपवास है.”   उसके इस   गर्व   भरे ऐलान से हम तो हैरान रह गए, बल्कि कहना चाहिए, मन ही मन जल-भुन गए! वैसे तो आंटियों या दीदियों का उपवास का ऐलान कोई नई बात नहीं थी, पर शशि के इस ऐलान में वैसी ही गरिमा थी, जैसी किसी नेता के राजनीति से या क्रिकेटर के क्रिकेट से सन्यास लेने के   ऐलान में होती है, लिहाज़ा कुछ ही मिनटों में वो जैसे कोई स्टार बन गयी. उसके लिए बाकायदा तली हुई मूंगफली और आलू के चिप्स लाये गए. यही नहीं इतनी कम उम्र में