GRATITUDE: THE KEY TO HAPPINESS
Gratitude is a powerful
catalyst for happiness.
हमारे पापा इसका परफ़ेक्ट एग्जाम्पल थे. वे हमेशा खुश रहते थे क्योंकि उन्हें ज़िंदगी में थैंकफुल रहना आता था.
खाने का पहला कौर लेते ही उनके मुँह से निकलता था : वाह बेटी! बहुत बढ़िया बनाया है!
मम्मी बनाती थीं तब भी कहते थे: मजा आ गया जी, बड़ा अच्छा बनाया है !
मम्मी भले ही कहती थीं: हूंह ! तुम तो हमेशा ये ही बोलते हो, कभी ख़राब कहा है खाने को?
पापा कहते थे: जब अच्छा बना है तो ख़राब कैसे कहें?
अब सालों साल दिन के तीन वक़्त खाना हमेशा एक्सीलेंट कैसे बनता था, ये तो पापा ही जानें! पर उनके मुँह से निगेटिव कमेंट ज़्यादा से ज़्यादा इतना ही सुनने को मिलता था: नमक थोड़ा ज़्यादा हो गया, बेटा, कम डाला करो, जिसे चाहिये, ऊपर से के लेगा!
सिर्फ़ खाना नहीं, कोई भी छोटी से छोटी चीज़ उन्हें दो, खुश होकर लेते थे.
एक छोटी सी बात याद आती है. उमर बढ़ने के साथ मम्मी-पापा को सुई में धागा डालने में दिक़्क़त होने लगी थी.
एक बार मैंने अपनी फ्रेंड के घर एक थ्रेडर ( सुई में धागा डालने वाला) देखा जो मुझे बड़ा यूजफुल लगा. बाज़ार से ढूँढ कर मैं एक थ्रेडर ख़रीद लायी.
मम्मी को थोड़ा मुश्किल लगा, पर पापा ने उसे यूज़ करना सीख लिया. अब जब भी मम्मी को बटन या हुक लगाने होते ( या कुछ सिलना होता) मम्मी पापा से कहतीं: ए जी! इसमें धागा डाल दो !
पापा बड़े प्यार से धागा डाल कर मम्मी को देते, और मम्मी तसल्ली से बटन लगातीं.
मैं सामने होती तो पापा कहते: बेटा , ये बड़ा अच्छा ला दिया आपने, नहीं तो बड़ा मुश्किल होता था सुई में धागा डालना . मैं सामने नहीं भी होती, तब भी हर बार दोनों बात करते कि जब से रत्ना ने ये लाकर दिया, कितना आराम हो गया.
अगर कभी उस वक़्त मेरा फ़ोन आ जाये तो भी पापा कहते थे , मम्मी जी बटन लगा रही हैं, वो जो आपने थ्रेडर लाकर दिया है ना , उससे बड़ा आराम हो गया हम लोगों को.
पापा से सीखा है, खाना खाते हुए हर बार बनाने वाले की तारीफ़ करती हूँ.( ये अलग बात है कि हमारी कुक कुछ कहने से पहले ही पूछ लेती है: मैडम! अच्छा नहीं बना? )
ये भी सोचती हूँ उनकी ये सीख भी हम अपना सकें तो कितना अच्छा हो कि ज़िंदगी में खुश होने के लिए बड़ी या महँगी चीज़ें होना ज़रूरी नहीं है, थ्रेडर जैसी छोटी सी चीज़ में भी ख़ुशी ढूँढी जा सकती है.
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