Neelkanth tum neele rahiyo
 
   picture credit:  google images       बचपन में   हम दशहरा हमेशा जबलपुर में मनाते थे. ये बात सुनकर लोग कहते थे,”हाँ, जबलपुर का दशहरा बहुत मशहूर है न!” पर उन लोगों को किस मुंह से बताते कि हमें क्या पता, जबलपुर का दशहरा कैसा होता है, हमें तो   ग्राउंड के पास फटकने भी नहीं मिलता था. हम तो जबलपुर इसलिए जाते थे क्योंकि दीवाली दादा-दादी के घर पर ही मनानी होती थी. हमारे दादाजी याने बब्बाजी का मानना था कि भीड़ भाड़ वाली जगहों पर बच्चों को नहीं जाना चाहिए. नवरात्रि के नौ दिन तो आस-पास के दुर्गा पूजा के पंडाल देखने में गुजर जाते थे, पर दशहरा के दिन जब सारा शहर और आस-पास के गाँवों   के लोग दशहरा ग्राउंड की तरफ   जा रहे होते, तो हम बच्चे बब्बा की खटारा कार में लदकर मन मसोसते हुए भेड़ाघाट की तरफ जा रहे होते, नीलकंठ ढूँढने! बब्बा कहते थे, दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन जरूर करने चाहिए. कार शहर से बाहर निकलते ही सब की उत्सुक आँखें नीलकंठ को ढूँढने लगतीं और नीलकंठ दिखते ही सब एक सुर में जोर-जोर से बोलने लगते: नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी खबर भगवान से कहियो, कि...
 
