केर बेर को संग

 

बाकी सोसाइटीज का तो मुझे नहीं पता, पर कम से कम हमारे समाज में तो बचपन से लेकर बड़े होने तक हमें भले बनने की शिक्षा दी जाती है, जैसे :

कर भला सो हो भला

 

As you sow, so shall you reap….

 

बुरा जो देखन मैं चला…… जो दिल खोजा आपना, मुझ से बुरा ना कोय

 

वग़ैरा वग़ैरा 

 

हो सकता है ये सब शिक्षाएं कुछ हद तक सही हों, पर इन में उलझ कर अक्सर होता ये है हम पर अच्छा बनने की धुन सवार हो जाती है और अगर हमारे साथ कुछ भी  बुरा हो तो हम ख़ुद को ही दोषी मानने लगते हैं. 

 

ये शायद इसलिए कि किसी ने हमें ये नहीं बताया कि हमारे अच्छा करने से ये गारंटी नहीं मिल जाती कि हमारे साथ कोई बुरा नहीं करेगा. हमारे साथ बुरा करने वाले के पास अपने रीज़न हो सकते हैं, हो सकता है उसमें उसका कुछ फ़ायदा हो, हमसे उसे कुछ jealousy या fear हो, या हो सकता है हमें बुरा-भला कहने से उसकी ईगो satisfy हो रही हो. या ये सब न भी हो तो शायद उसके लिये हम इतने इम्पोर्टेंट ही ना हों, कि वो हमें कुछ भी कहने के पहले दो पल सोचे! अब अगले के पास हमें बुरा ट्रीट करने के हज़ार कारण हो सकते हैं, पर हम क्यों उस बात को  दिल पर लेकर अपने आप को कोसने लगते हैं हम क्यों ये मान लेते  हैं कि वो इंसान सही है, और बार-बार बीती बातों को मन में दोहरा कर अपने मन मे खुद को ही जस्टीफिकेशन देने लगते हैं!

 

क्यों नहीं हम ये छोटी सी बात एक्सेप्ट कर पाते कि सामने वाला एक बुरा इंसान है ( या कम से कम उसका बिहेवियर बिलकुल गलत या बुरा है ) जो शायद अपने अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकता, या दूसरे की फ़ीलिंग्ज़ के लिए बिलकुल भी सेंसिटिव नहीं है. हो सकता है वो हमें समझ नहीं पाया, पर ये भी तो उसकी गलती है! जब हम अपनी जगह सच्चे हैं तो हर किसी को समझाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है. हाँ, हमारी ये गलती हो सकती है कि हमने उस इंसान पर भरोसा किया या उस से अच्छे बर्ताव की उम्मीद की, पर ये इतनी बड़ी गलती नहीं है कि उसके लिए हम खुद को कोसें.

 

अच्छा बनने की अनगिनत नसीहतों के बीच रहीम की ये सीख भी याद रखने की जरूरत है:

 

 

कहु रहीम कैसे निभै, केर बेर को संग

 

वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग

 

अर्थात केले और बेर के पेड़ का साथ संभव नहीं है. बेर का पेड़ मस्ती में डोलेगा तो केले के पत्ते छिल जायेंगे.

 

इसलिए  बेहतर है, इन बेर के पेड़ों से दूरी बनाएं,  अपनी बुरा ना देखने या खुद में बुराई खोजने की महान आदतों को त्याग दें और और उस बुरे इंसान को हज़ार लानतें भेज कर (मन ही मन या फिर इष्ट मित्रों के साथ )  अपना ध्यान अपने आस-पास के अच्छे इंसानों में लगाएं. हमें पता है कि हम अच्छे इंसान हैं, तो  हमें  किसी दूसरे को ये ताकत नहीं देनी चाहिए कि वो हमारा खुद पर से ही भरोसा ख़त्म कर दे.


इन सभी बातों  का मतलब ये बिलकुल भी नहीं है कि हम कभी भी गलत नहीं हो सकते, बल्कि  ये समझाना है कि हम हमेशा गलत नहीं होते हैं, इंसान को खुद के लिए बिना जरूरत बहुत harsh नहीं होना चाहिए.

 

 

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