केर बेर को संग
बाकी सोसाइटीज का तो मुझे नहीं पता, पर कम से कम हमारे समाज में तो बचपन से लेकर बड़े होने तक हमें भले बनने की शिक्षा दी जाती है , जैसे : कर भला सो हो भला … As you sow, so shall you reap…. बुरा जो देखन मैं चला …… जो दिल खोजा आपना , मुझ से बुरा ना कोय वग़ैरा वग़ैरा हो सकता है ये सब शिक्षाएं कुछ हद तक सही हों , पर इन में उलझ कर अक्सर होता ये है हम पर अच्छा बनने की धुन सवार हो जाती है और अगर हमारे साथ कुछ भी बुरा हो तो हम ख़ुद को ही दोषी मानने लगते हैं. ये शायद इसलिए कि किसी ने हमें ये नहीं बताया कि हमारे अच्छा करने से ये गारंटी नहीं मिल जाती कि हमारे साथ कोई बुरा नहीं करेगा. हमारे साथ बुरा करने वाले के पास अपने रीज़न हो सकते हैं , हो सकता है उसमें उसका कुछ फ़ायदा हो , हमसे उसे कुछ jealousy या fear हो , या हो सकता है हमें बुरा-भला कहने से उसकी ईगो satisfy हो रही हो. या ये सब न भी हो तो शायद उसके लिये हम इतने इम्पोर्टेंट ही ना हों , कि वो हमें कुछ भी कहने के पहले दो पल सोचे! अब अगले के पास हमें बुरा ट्रीट करन...