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रेलगाड़ी ...रेलगाड़ी पार्ट-1

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   क्लास ग्रुप में एक  मित्र के मेसेज से पता चला कि आज भारतीय रेल का हैप्पी बर्थडे है. याद करने बैठी तो हैरानी हुई कि ऐसा भी समय था, जब इंडिया में ट्रेन नहीं थीं.  ट्रेन  से जुडी अपनी यादों को समेटने बैठी तो लगा इतनी यादें एक ही पोस्ट में समेटना मुश्किल है. इसलिए आज इस पोस्ट के पहले भाग में मैंने कोशिश की है ट्रेन  से जुड़ी बचपन की यादों  को समेटने की अपनी पहली ट्रेन यात्रा याद करने की कोशिश करूं तो कुछ याद नहीं आता. हमारे लिए रेल परिवार की तरह है, जिन्हें होश संभालते ही देखा, जैसे   मम्मी पापा, बब्बा दादी, दीदी भैया!   सफर कि तो बात ही क्या है, हम तो ट्रेन देख कर भी एक्साइट हो जाते थे. मुझे याद है, KG में हमें एक पार्क में पिकनिक में ले गए थे. ( उस जमाने में भी बच्चों को पिकनिक के नाम पर किसी पार्क में लेजाकर बेवकूफ बना देने का रिवाज़ था ) तभी पार्क के पीछे से ट्रेन   निकली तो हम सब बच्चे खेल रोक कर जोर जोर से चिल्ला कर और हाथ हिला कर टाटा करने लगे. यूँ ट्रेन के डब्बों को टाटा करना कोई नयी बात नहीं थी, हम तो मालगाड़ी तक को टाटा किया करत...

नया साल और बधाई के खत

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   फिर से नया साल आ गया. वैसे बचपन से देख रहे हैं, हर साल नया साल आ ही जाता है, वो भी   सेम तारिख को यानी एक जनवरी को. अब ये अलग बात है कि नए साल कि बधाई देने के तरीकों में जमाने के साथ साथ बहुत बदलाव हुए हैं.   आज के व्हाट्स एप फॉरवर्ड के जमाने में कुछ   लोग ग्रीटिंग कार्ड को याद करके भावुक होते है, पर हमारे बचपन में ग्रीटिंग कार्ड भी नहीं भेजे जाते थे. हमारे लिए नए साल का मतलब होता था, सब को चिट्ठियाँ लिखना ! कम से कम   पंद्रह बीस दिन का प्रोजेक्ट होता था भई, दादाजी, दादीजी, चाचाजी, चाचीजी, मामाजी, मौसी जी, और बड़े भैया और दीदियों को पत्र लिखने का ! और तो और पुराने स्कूल कि सहेलियों को भी चिट्ठियाँ लिखी जातीं. अब पोस्टकार्ड में पत्र लिखना तो हम अपनी प्राइवेसी का घोर उल्लंघन समझते थे, और लिफ़ाफ़े मम्मी को फिजूलखर्ची का प्रतीक लगते थे. (लिफ़ाफ़े हमारे घर में सिर्फ राखी पर आते थे, क्योंकि राखी तो पोस्टकार्ड या अंतर्देशीय में नही भेजी जा सकती थीं.) तो ले-दे कर सिर्फ अंतर्देशीय पत्र बचते थे. दिसम्बर के शुरू में ही मम्मी ढेर सारे इनलैंड लैटर मंगवा देतीं और स्कूल से ...