मीठी यादें
बचपन में हमारी दीवाली और गर्मियों की छुट्टियाँ जबलपुर में बब्बा के घर पर गुजरती थीं. वहां चाचाजी और बुआजी के बच्चों के साथ मौज मस्ती में कैसे टाइम बीतता था, पता ही नहीं चलता था. छुट्टियों का हम बेसब्री से इंतजार करते थे, पर गर्मियों की छुट्टी का एक बहुत बड़ा आकर्षण होता था, आइस क्रीम! उस जमाने में हम कुल्फी, ऑरेंज बार, अलाना-फलाना बार के बारे में नहीं जानते थे, हम तो बस लकड़ी की डंडी में लिपटी हुई अद्भुत स्वाद वाली रंग बिरंगी बर्फ दीवाने थे, जिसे आइस क्रीम कहा जाता था. आइस क्रीम वाले की घंटी की आवाज़ सुनते ही हम सब बच्चे गिरते पड़ते चप्पल पहन कर बाहर भागते. घर से थोड़ी दूर अगले चौराहे पर आइस क्रीम वाले को पकड़ना जो होता था. अगले चौराहे पर इसलिए, क्योंकि हमारे बब्बाजी (यानि दादाजी) को आइस क्रीम से सख्त नफरत थी. अगर वे कभी किसी बच्चे को आइस क्रीम खाते देख लेते तो उसी समय फिंकवा देते: फेंको इसे, नाले के पानी से बनती है ये! आइस क्रीम फेंके जाने के गम में कभी बब्बा से ये पूछने का ख़याल भी नहीं आया कि...