नया साल और बधाई के खत

 

 फिर से नया साल आ गया. वैसे बचपन से देख रहे हैं, हर साल नया साल आ ही जाता है, वो भी  सेम तारिख को यानी एक जनवरी को. अब ये अलग बात है कि नए साल कि बधाई देने के तरीकों में जमाने के साथ साथ बहुत बदलाव हुए हैं.  आज के व्हाट्स एप फॉरवर्ड के जमाने में कुछ  लोग ग्रीटिंग कार्ड को याद करके भावुक होते है, पर हमारे बचपन में ग्रीटिंग कार्ड भी नहीं भेजे जाते थे. हमारे लिए नए साल का मतलब होता था, सब को चिट्ठियाँ लिखना ! कम से कम  पंद्रह बीस दिन का प्रोजेक्ट होता था भई, दादाजी, दादीजी, चाचाजी, चाचीजी, मामाजी, मौसी जी, और बड़े भैया और दीदियों को पत्र लिखने का ! और तो और पुराने स्कूल कि सहेलियों को भी चिट्ठियाँ लिखी जातीं. अब पोस्टकार्ड में पत्र लिखना तो हम अपनी प्राइवेसी का घोर उल्लंघन समझते थे, और लिफ़ाफ़े मम्मी को फिजूलखर्ची का प्रतीक लगते थे. (लिफ़ाफ़े हमारे घर में सिर्फ राखी पर आते थे, क्योंकि राखी तो पोस्टकार्ड या अंतर्देशीय में नही भेजी जा सकती थीं.) तो ले-दे कर सिर्फ अंतर्देशीय पत्र बचते थे. दिसम्बर के शुरू में ही मम्मी ढेर सारे इनलैंड लैटर मंगवा देतीं और स्कूल से आकर हमारा  रोज़ का काम होता, चिट्ठियाँ लिखना! कई बार तो पोस्ट ऑफिस में इनलैंड लैटर कि कमी हो जाती थी. मुझे याद है, एक बार नया साल शुरू होने के पहले ऐसी ही कमी हुई थी, और बड़ी मुश्किल से जब  इनलैंड लैटर उपलब्ध हुए, तब तक नया साल शुरू हुए 4-5 दिन निकल चुके थे! हमने मम्मी से गुस्से में कहा: अब इतने लेट हो गए, अब क्या नए साल की चिट्ठियाँ लिखें! जवाब में मम्मी ने जो तर्क दिया तो बेजोड़ था: अरे लेट काहे का! नया साल तो अभी साल भर चलेगा!

अब मम्मी को कौन समझाए कि साल तो साल भर चलेगा पर नया थोड़े ही न रह जायेगा! पर ठन्डे दिमाग से सोचने पर समझ में आ गया कि नए साल की चिट्ठियों की स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ नहीं होता था, जो एक हफ्ते देर से लिखने पर बदल जाए. हैप्पी न्यू इयर या आपको नए वर्ष की शुभकामनाएं जैसे एक दो वाक्यों को निकाल दें तो वही, स्कूल की, पढ़ाई की, स्कूल में होने वाले एनुअल फंक्शन की तैयारियों की बातें!  ठण्ड कितनी पड़ रही है, और घर में किसको सर्दी जुकाम हो गया, इसके समाचार! अगर मिट्ठू ने कोई नया वर्ड सीख लिया हो, तो उसके बारे में भी लिख देते, पर उस गधे से ऐसी होशियारी की उम्मीद कम ही रहती थी. बगीचे में कोई सब्जी या फल उगे हों, तो वो भी लिख दिया जाता. बगीचे में सांप निकला हो तो दो-चार लाइन्स उसके वर्णन में भी लिख दी जातीं.

फिर दस-पंद्रह दिन की इस मैराथन राइटिंग के बाद चिट्ठियों को पोस्ट कर दिया जाता, और इंतज़ार शुरू होता जवाबी खतों का! अक्सर  ऐसा होता कि दूसरे छोर से भी इसी समय पर  नए साल पर खत लिख दिया जाता, और जब तक हमारा खत वहां पहुँचता, वहां का खत यहाँ, आ जाता. फिर दोनों और से जवाब लिखे जाते और इस तरह  चिट्ठियों का सिलसिला साल भर चलता रहता. नए साल के अलावा जन्मदिन और त्योहारों पर भी चिट्ठियाँ लिखी जाती थीं, पर नए साल पर चिट्ठियाँ लिखना और पाना खास होता था, शायद इसलिए कि ये माना जाता था कि साल का पहला दिन जैसा गुजरेगा, पूरा साल वैसा ही गुजरेगा. और पूरे साल अगर चिट्ठियाँ मिलती रहें तो इससे अच्छा क्या हो सकता था?

समय बदलने के साथ साथ नए साल की बधाइयों में कई बदलाव आये, जैसे ग्रीटिंग कार्ड्स, फ़ोन कॉल्स, SMS और अब whats app messages और विडियो कॉल्स! पर नए साल की उन बधाइयों में पता नहीं क्या जादू था, उन नीले रंग के इनलैंड लेटर्स की सोंधी-सोंधी महक अभी भी दिल में बसी हुई है.

Comments

  1. आह! क्या याद दिला दिए। ये नीला पन्ना...बहुत सुंदर लिखा है 😊

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    1. रश्मि, मैं भी बड़ा मिस करती हूँ उन नीले पन्नों को

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  2. बहुत ही प्या्रा लिखा है। मज़ा आ गया

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    1. Thanks for reading and the feedback Jamshed

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